Sunday, April 3, 2011

5. अनर्गल वार्ता

                         कॉलेज के सभी छात्रों के प्रायः एक या दो स्थानीय अभिभावक होते थे, जिन्हें हम 'एल० जी०' (लोकल गार्जियन) कहते थे| यदा कदा छात्र इनके यहाँ जाकर जूठन गिराने के साथ साथ पड़ोस की लड़कियों को अपना इंजीनियरिंग स्टुडेंट होने की बात बता कर सारी संभावनाओं को तलाशते थे| मेरी भी दोस्ती मामा के एक पडोसी की लड़की 'रागिनी' से हो गयी थी, मैंने उसे म्यूजिक सिखाने के बहाने उसके घर जाना शुरू कर दिया| मामा को भी हमलोगों की इस दोस्ती में कोई एतराज नहीं था| रागिनी जब भी मिलती थी, हर बार यही बताती थी कि उसने पहले मुझे कहीं देखा है| वो मुझसे काफी प्रभावित रहती थी| उसके घर वाले भी मेरी बहुत प्रशंसा करते थे, हमेशा मेरा उदाहरण देते थे| एक दिन अचानक रागिनी को याद आ गया कि उसने मुझे पहले कहाँ देखा था| मुझे एक दिन बिस्टूपुर से कॉलेज ऐसे टाइम पर जाना था जब कॉलेज की 'बस' उपलब्ध नहीं थी| अब मेरे पास कानूनी तरीके से दो 'ऑप्शन्स' थे, या तो शाम तक इंतजार करूँ, या ऑटो रिक्शा से जाऊं, एक में समय की बर्बादी थी, दूसरे में पैसे की| अतः मैंने एक तीसरे और गैरकानूनी 'ऑप्शन' का चयन किया| 'आनंद रेस्टोरेंट' के पास हमेशा कॉलेज के कुछ स्टुडेंट्स मौजूद रहते थे क्योंकि वही महिला कॉलेज आने जाने का प्रमुख रास्ता था| वहां से मैंने तीन चार स्टुडेंट्स को साथ लेकर, 'बस' हाईजैक करने का निश्चय किया| 'बस' हाईजैक करने की प्रक्रिया बड़ी सरल थी, इसके लिए सिर्फ एक साथ तीन चार स्टुडेंट्स को यात्रियों से भरी हुई 'बस' में सवार होना होता था, यहीं से हाइजैक की शुरुआत हो जाती थी| 'बस' में सवार होने के बाद बाकी के यात्रियों को बताना होता था कि अब 'बस' आर० आइ० टी० जाएगी| इसके बाद यात्री स्वतः ही 'बस' से नीचे उतर जाते थे, हाँ! यदा कदा किसी यात्री के एतराज जताने पर उसकी पिटाई करनी पड़ती थी| उसके बाद 'बस' इन स्टुडेंट्स को लेकर कॉलेज की ओर चल पड़ती थी| रागिनी ने उस दिन मुझे 'बस' को हाईजैक करते हुए देखा था और इसी वजह से उसे ये लगता था कि उसने मुझे कहीं देखा है| उस घटना के याद आने के बाद से वो मेरे लिए अपरिचिता हो गयी, उस पर लुटाये मेरे सारे पैसे व्यर्थ हो गए| अब एक बार फिर मुझे काव्या याद हो आयी| उसके बाद याद आये वो तीन लड़के जो आजकल शिफ्ट में उससे मिलने जाते थे| मैं उनके ऊपर बल प्रयोग तो कर सकता था, परन्तु मुझे पता था कि उसके बाद मेरी उम्मीदवारी सहानुभूति के लहर में डूब जाएगी| उन्हें बल से नहीं छल से मारना था, अतः मैंने 'कल्चरल एंड ड्रामैटिक सोसाइटी' में अपनी भागीदारी बढ़ा दी| हालाँकि मेरी ये हरकत मेरे मित्रों को बहुत नागवार गुजरी, मेरे मित्र मुझसे दो चीजें, 'पढाई और संगीत' की अपेक्षा कत्तई नहीं करते थे| लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था मैंने संगीत साधना करने की ठान ली थी| मैं रतन सिंह को, जो कि वास्तव में बहुत ही मंजे हुए कलाकार एवं हारमोनियम वादक थे, इस चक्कर में 'आनंद जी' संबोधन से पुकारता था कि वो भी मुझे 'कल्याण जी' बोलें| और वो भी मुझे 'कल्याण जी' ही बोलते थे| इससे मुझे आत्मिक आनंद मिलता था|   
                             आजकल वीर रस वाले भी श्रृंगार रस में डूबे हुए थे| एक से एक बॉस अश्लील गालियों को छोड़ कर स्माइल पास करने लगे थे| हर तरफ विनम्रता ही विनम्रता थी| सतयुग आ गया था| इश्क बरसाती घाव की तरह हर जगह और हर शख्स को होने लगा था| किसी को इश्क का फोड़ा हुआ था तो कोई इश्क की फुंसी से परेशान था| इश्क की खुजली तो प्रायः सभी को हो गयी थी, कुछ एक ने तो अकेले ही फोड़ा, फुंसी और खुजली तीनों को पाल रखा था| नाना प्रकार की सोसाइटियाँ इस बरसाती घाव के 'साइड इफेक्ट' के रूप में कुकुरमुत्ते की तरह उग रही थीं| जल्दी जल्दी कुछ 'पॉश' और अंग्रेज टाईप की लड़कियों के पुनर्वास के लिए रोटरैक्ट क्लब की स्थापना भी की गयी| भगदड़ मच गयी थी| कुछ सोसाइटियों में एंट्री लेना, इंजीनियरिंग एंट्रेंस से ज्यादा मुश्किल था बशर्ते एंट्री के लिए इच्छुक व्यक्ति देखने में बहुत सुंदर लड़की नहीं हो| इन सोसाइटियों के चेयरपर्सन्स कैम्पस में हंसों की तरह विचरते थे| ये किसी से बात करें या न करें, इनकी इच्छा पर निर्भर करता था| ये अपने आप को इश्वर का अद्भुत वरदान और दूसरों को कीड़े मकोड़े मानते थे| एक दिन एक प्रोफ़ेसर ने फर्स्ट ईयर की एक लड़की को अपना रिश्तेदार बताते हुए मुझसे परिचय कराया और उसे 'कल्चरल एंड ड्रामैटिक सोसायटी' में दाखिल करने के लिए पैरवी की| मैंने उस लड़की को वैसे ही देखा जैसे लोग फर्स्ट ईयर की लड़कियों को देखते थे, फर्स्ट ईयर के हिसाब से लड़की काफी टैलेंटेड दिखी| उस उम्र में लड़कियां दो ही प्रकार की होती थीं या तो सुंदर या फिर बहुत सुंदर| लड़की किसी न किसी सोसाइटी में घुसने के लिए बेचैन थी| सुन्दरता के लिहाज से वह अपने मेरिट पर ही सेलेक्ट होने के लायक थी, परन्तु मेरा सौभाग्य था कि ये श्रेय मुझे मिला| मुझे चयन करना था कि इस सहायता के प्रतिफल के रूप में उस लड़की का सान्निध्य चाहिए या इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग प्रक्टिकल में अच्छे मार्क्स| लड़की गाना जानती नहीं थी और वाद्य यंत्रों के नाम पर सिर्फ ताली बजा सकती थी, अतः उसने मुझ से किनारा कर लिया और वो ड्रामैटिक विंग के हेड के हिस्से पड़ी| मैंने भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में अच्छे अंक पाए|
                          इसी काल में एक अनाधिकारिक और स्वघोषित सोसायटी 'FOSLA' का प्रादुर्भाव हुआ, इसका फुल फॉर्म 'Frustrated One Sided Lover's Association' था| इसका सदस्य बनने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर मुंह लटका कर गहन चिंतन की मुद्रा में बैठना होता था, फोसला लिखे टी-शर्ट पहनने होते थे, ये एक प्रकार से 'To Let' का बोर्ड था, ये अप्रत्यक्ष रूप से लड़कियों को बताने की एक कोशिश होती थी कि अभी भी एक अदद प्रेमिका की जरूरत है| 'FOSLA" के सदस्यों के सामने गर्ल फ्रेंड की बात करना ऐसा ही था जैसे आमरण अनशन पर बैठे आदमी के सामने रसगुल्ले की बात करना| इनका सबसे बड़ा दुश्मन वो होता था जिसके दो या दो से ज्यादा गर्ल फ्रेंड्स थीं| इस सोसायटी के कार्यकारिणी के एक पदाधिकारी से एक दिन प्रिंसिपल सर ने अचानक इनके टी-शर्ट पर अंकित 'FOSLA' का अर्थ पूछ दिया, ये इस संभावित हमले के लिए पहले से तैयार थे और इन्होने इसका विस्तार 'Federation Of Social and Legal Activist' बता कर प्रिंसिपल साहब के सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया|
                                    गेस्ट हॉउस के बगल में जो बंगला था, उसका हम लोगों के नजर में वही महत्व था जो अमरीकियों  के लिए 1600-पेन्सिलवानिया एवेन्यू, अंग्रेजों के लिए 10-डाउनिंग स्ट्रीट, और कैम्पस के बाहर के भारतीयों के लिए 10-जनपथ एवं 7-रेसकोर्स रोड (दोनों) का हुआ करता था| ये वही बंगला था जिसमें हमारे प्रिंसिपल साहब रहते थे| इनके भगवान् विष्णु की भांति दस अवतार थे, केवल क्रम उल्टा था| भगवान् विष्णु मत्स्य से शुरू होकर कल्किअवतार की ओर बढ़े थे, जबकि हमारे प्रिंसिपल साहब ने पहले कल्कि अवतार में आकर कॉलेज में व्याप्त कलयुग को समाप्त किया, तत्पश्चात बुद्धावतार में आकर जाति-पांति को मिटाया, फिर कृष्णावतार में कॉलेज में काफी तादाद में कंस्ट्रक्शन करा कर माखनचोरी की लीला दिखाते हुए एकाध महाभारत को भी प्रायोजित किया| इसी कृष्णावतार के दौरान कॉलेज में गोपियाँ भी लायी गयीं| अब ये रामावतार में आदर्श मानव बन कर स्टुडेंट्स के उत्पात करने पर संस्कृत के श्लोक सुनाते थे और ऊँची ऊँची आदर्शवादी बातें करते थे| फिर क्रमशः परशुराम, वामन, नरसिंह, वाराह और कुर्मावतार लेते हुए मत्स्य बन कर जल में विलीन हो गए| इनकी महिमा अपरम्पार थी| जिस नियम के अनुसार कॉलेज की भाषा में कैलकुलेटर 'कैल-सी' हो गया था उसी नियमानुसार हम इन्हें 'प्रिंसी' बोलते थे| प्रिंसिपल साहब विद्वान होने के साथ साथ बुद्धिमान भी थे| इन्हें जहाँ भी जाना होता था, इनसे पहले कॉलेज के 'असिस्टेंट प्रोक्टर' वहां जाकर केवल खौफ पैदा करते थे, उसके बाद एकाध डीन और कुछ खूंख्वार टाईप के प्रोफ़ेसर पहुँचते थे, फिर प्रिंसिपल साहब प्रकट होते थे| इनके सारे तौर तरीके निराले थे और इनके बदन पर कोई भी सूट दुबारा नहीं देखा जा सकता था| कॉलेज में दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रही विभिन्न सोसाइटियों के स्थापना में प्रिंसिपल सर का बड़ा योगदान था| प्रिंसिपल सर 'धृतराष्ट्र' बन कर इन सोसाइटियों के चेयरपर्सन्स रूपी 'संजयों' से होस्टल के अन्दर की सारी गतिविधियों की खबर लेते रहते थे| एक दिन  हम लोग बहुत हिम्मत करके इनके बंगले पर ये जताने के लिए गए कि हम लोग भी आज कल किसी न किसी रचनात्मक कार्य में लगे हुए हैं और अपना इतिहास भुलाकर 'धृतराष्ट्र-संजय' संवाद में हिस्सा लेना चाहते हैं| हमें दरबान द्वारा इनके इंतजार में बैठा दिया गया| करीब 15 मिनट बाद प्रिंसिपल साहब लखनवी कुरते-पजामे में बाहर निकले| ये हमलोगों को अच्छी तरह से पहचानते थे और अमावस्या की रात में भी, हम में से किसी को पहचान सकते थे, फिर भी 'डिमोरलाईज' करने के नीयत से नाम और बैच पूछने जैसी शुरुआती औपचारिकताओं के बाद इन्होने हमें बैठने का इशारा किया| इनके बैठते ही, एक नौकर, जिसे खानसामा कहना ज्यादा उचित होगा, ने आकर इन्हें दुशाला ओढ़ाया| मुझे लखनऊ के नवाब 'वाजिद अली शाह' याद हो आये, जो सिर्फ इस वजह से अंग्रेजों के कब्जे में आ गए थे कि  भागने के लिए कोई इन्हें जूता पहनाने वाला नहीं था| हम लोगों ने किसी तरह से बातें तो शुरू कर दी, लेकिन ना हम अपनी बात उन्हें समझा पाए ना ही वो हमलोगों की बात समझ पाए| पूरे वार्तालाप में 'निरूपा राय' सरीखी 'फ़िल्मी माँ' जैसी उनकी धर्मपत्नी द्वारा खिलाये गए खीर और कॉलेज में उत्पात मचा रहे किसी दानव की चर्चा होती रही| उस दानव को कॉलेज से निष्काषित करने के बारे में पूछे जाने पर प्रिंसिपल साहब ने हम लोगों के ही कुछ दोष उजागर करते हुए अपना मन साफ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया|
                                  एक दिन 'गोपाल हट' के पास एक सोसाइटी के चेयरमैन, जो खुद को 'हंस' समझते थे, चार पांच 'कीड़े मकोड़ों' से बात करके एहसान कर रहे थे| इन्हें मेरे बारे में ये भ्रम रहता था कि मैं भी अपने आप को 'हंस' समझता हूँ, और इनके 'कीड़े मकोड़ों' पर बुरी नज़र रखता हूँ| मैं उधर से ही गुजर रहा था, मुझे सुनाने के उद्देश्य से, जिस प्रकार योजना आयोग का अध्यक्ष 'मीडिया' के सामने 'पंचवर्षीय योजना' की कार्यसूची रखता है, वैसे ही ये अपने भविष्य के लक्ष्यों के बारे में बताने लगे| इनकी बातों में से 'फंड', 'प्रोग्राम', 'मीटिंग', 'एजेंडा'  'प्रिंसी', 'स्पोंसेर्स', 'सेक्रेटरी' और ऐसे पता नहीं कितने शब्द फूल बन कर झड़ रहे थे| अचानक, इस उम्मीद में कि मैं इनसे प्रभावित होकर इनके चरणों में आ गिरूंगा, इन्होने एकाध राष्ट्रीय स्तर के पर्वतारोहियों के नाम ले डाले| कीड़े मकोड़ों को इनके मुखारविंद से इतनी ऊँची बातें सुनकर उम्मीद बंधी कि अब जरूर आकाशवाणी होगी, सभी अनंत आकाश की ओर देखने लगे, परन्तु एक कौवा भी नहीं बोला| मैं उनकी तरफ एक रस्मी मुस्कान फेंकते हुए आगे बढ़ गया| अब वे भी दुश्मन को जाता देख सामान्य मुद्रा में बातें करने लगे| मुझे डी० एम० सिंह पानी टंकी की ओर जाता दिखा, मैं भी साथ हो लिया| डी० एम० सिंह हर पेपर की परीक्षा देने से पहले पानी टंकी के पास वाले मंदिर में शंकर जी से आशीर्वाद लेने जाता था| पूरे रास्ते वह मुझे उस मंदिर और शंकर जी के महत्व को बताता रहा| इसी वार्तालाप में मुझे पता चला कि हाल में जो प्रिंसी की कार और ऑफिस को स्टुडेंट्स ने जलाया था, ये डी० एम० सिंह के, शंकर जी से मांगे गए, वरदान का ही परिणाम था| अब तो मुझे डॉ. राम सर के घर का स्टुडेंट्स द्वारा शीशा फोड़ने में भी डी० एम० सिंह और शंकर जी की ही मिलीभगत लगी| दरअसल डॉ. राम सर ने डी० एम० सिंह को परीक्षा भवन में 'ओटा' पद्धति का प्रयोग करते हुए पकड़ लिया था और उसके तुरत बाद डी० एम० सिंह शंकर जी के मंदिर की तरफ जाता हुआ देखा गया था|                
                                     रोज शाम को 'श्याम' कॉलेज के अन्दर ही पेस्ट्री और चाय की दुकान लगाता था, अभी उसकी दुकान लगने में करीब एक घंटा बाकी था अतः मैं कुछ मनोरंजन के लालच में लाइब्रेरी की ओर बढ़ा| लाइब्रेरी में कई प्रेमी जोड़े अलग अलग पढ़ाई करने की मुद्रा में बैठ कर वार्तालाप कर रहे थे, मैं भी कोने वाली शीट पर विजयपाल के साथ बैठ कर पब्लिक में कंफ्यूजन क्रिएट करने लगा| तभी मेरे बैच का एक लड़का गाना गाते हुए लायब्रेरी में घुसा| लाइब्रेरियन ने उसकी तरफ देखते हुए चुप होने का इशारा किया| उसे बेइज्जती से ज्यादा लाइब्रेरियन के मुंह लगने का दुःख हुआ| उसने लाइब्रेरियन को दांत दिखाते हुए बाकी के लोगों की तरफ इशारा कर के कहा, 
"यहाँ सारे बैठ कर गुटरगूं कर रहे हैं तो आपको कोई दिक्कत नहीं हो रही है?"
लाइब्रेरियन कहाँ चूकने वाले थे, बोले, 
"आप भी गुटरगूं कीजिये, काँव काँव क्यों कर रहे हैं?"
सारे हंस पड़े| बेईज्जती तो हो ही चुकी थी, लड़के ने खून का घूंट पीते हुए झूठ का सहारा लिया,
"आधे दाम में दें या चौथाई में, आप को मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ, मैं नहीं खरीदूंगा लाइब्रेरी की किताब|"
लाइब्रेरियन की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी थी, उन्होंने हाल में ही लाइब्रेरी से किताबें गायब होने की घटना को कॉलेज प्रशासन के समक्ष रखा था| बेचारे के होश उड़ गए, लगभग गिड़गिडाते हुए आश्चर्य से बोले,
"मैंने आपको किताब खरीदने को कहा था?"
लड़के ने उनके आश्चर्य चकित होने को उनकी स्वीकारोक्ति घोषित करते हुए कहा,
"जी! मैंने कह दिया ना कि मेरे अपने सिद्धांत हैं मैं नहीं खरीद सकता चोरी की किताब|"
लाइब्रेरियन ने एक चांस लिया,
"ठीक है अब हम लोग प्रिंसिपल के ऑफिस में ही मिलेंगे|"
लड़का भी इस हमले के लिए तैयार था, अब उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हुए कहा,
"मुझे तो एबोर्शन वाली बात भी पता है, अब मेरा मुंह मत खुलवाइए जाने दीजिये|"
हिरोशिमा पर एटम बम तो पहले ही गिर चुका था, इससे पहले कि वो संभलें, नागासाकी भी तबाह हो गया|
हम लोगों ने बीच बचाव कर के मामला शांत किया| चाहे जो भी हो, लड़के ने कचड़ई तो कर दिया था, लेकिन लाइब्रेरियन की भी हवा निकल गयी थी|
                                      'श्याम' दुकान लगा चुका था, धीरे धीरे वहां गोष्ठियां शुरू होने लगीं| स्टुडेंट्स जोड़ों और गुच्छों में आने और बैठने शुरू हो गए| कहीं कहीं हर पांच लड़कों पर एक-एक द्रौपदियां वातावरण को एकाध घंटा 'एक्स्ट्रा' बिताने लायक बनाने लगीं| अंग्रेजी के 'स्लैंग्स' प्रयोग होने लगे| मैंने भी अंग्रेजी सीखने के लालच में कुछ खट्टों के जमात में बिना इस बात की चिंता किये कि उन्हें ये बात अच्छी लगी या नहीं, पैर जमा दिया| खट्टा एक ऐसी प्रजाति का नाम था जो मूलतः दक्षिण भारत के निवासी थे, ये देखने में बिलकुल आम लोगों की तरह होते थे, परन्तु इनमें 'टैलेंट' कूट कूट कर भरा होता था| ये अंग्रेजी बहुत धाँसू बोलते थे और दूसरे के द्वारा गलत अंग्रेजी बोले जाने पर उसका डर के मारे मजाक भी नहीं उड़ाते थे| इनमें से ज्यादातर लोग या तो गिटार बजाते थे या फिर टेनिस खेलते थे| इनकी वेश भूसा भी 'नॉर्मल' से थोड़ा हट के थी| इनकी इन्हीं बातों से मैं इनकी तरफ खिंचा चला आया था| मैंने इनका सान्निध्य पाने और इनके जैसा दिखने के लिए एकाध जींस की पैंट को जहाँ तहां ब्लेड से काट भी लिया था और हर बात से पहले "दि थिंग इज", "बाइ द वे", "आई मीन टू से" इत्यादि जोड़ कर बोलने लगा था| अभी बात चल रही थी कि दूसरे कॉलेज क्यों हमारे कॉलेज से बेहतर हैं| पढ़ाई को छोड़ कर सभी विन्दुओं पर चर्चा हुई| दो राउण्ड चाय और सिगेरेट चल चुकी थी| मैं श्याम से एक 'क्रीम रोल' लेने गया तभी श्याम मुझे एक लड़के को दिखाते हुए बोला, "बाबू! वो आपके साथ वाला लड़का है ना? देखिये! आज उसका हिसाब लिख रहा हूँ| अभी तक दो पैटीज, एक पेस्ट्री, दो चाय और दो सिगेरेट ले चुका है, जरा जाते वक़्त देखिएगा कितना पैसा देता है|" मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि वो लड़का एक दिन मुझे बता रहा था कि श्याम बेईमान हो गया है, ज्यादा पैसे मांगता है| मुझे "ऑफेंस इज दि बेस्ट डिफेन्स" का अर्थ उस दिन ठीक से समझ में आया| मैं 'क्रीम रोल' खाते हुए गोष्ठी के अगली कार्रवाई का हिस्सा बनने के लिए फिर जा कर बैठ गया| अभी लायब्रेरी वाली घटना की चर्चा हो रही थी और सर्व सम्मति से पहले हिंदी में, फिर अंग्रेजी में निर्णय लिया गया कि लायब्रेरी वाली घटना एक बुरी और दुखद बात है और इस मामले में भी बाकी के कॉलेज हमारे कॉलेज से अच्छे हैं| तभी 'परेरा' भागता हुआ आया और जमीन पर धम्म से बैठ गया, वह बुरी तरह से हांफ रहा था| कारण पूछने पर बताया कि उसे कुत्ते दौड़ा दिए थे, और वह बड़ी मुश्किल से जान बचा कर भाग आया था| कुत्तों के दौड़ाने का असली कारण मुझे मालुम था, क्योंकि ये 'परेरा' के साथ कई बार हो चूका था| दरअसल वह विचित्र और फटे कपड़े पहने, लड़कियों जैसे लम्बे बालों की चोटी बनाये, कान में टॉप्स और गले में ब्लेड जैसा लाकेट लगाये, एक ऐसी साईकिल से, जिसे देखकर प्रतीत होता था कि किसी दुर्घटना के बाद उसका हैंडल सीधा करने की  कोशिश की गयी हो, कोई  अंग्रेजी गाना जोर जोर से गाते हुए आ रहा होगा, कुत्तों को ये बात नागवार गुजरी होगी, और उन्होंने फ़ौरन कार्रवाई शुरू कर दी होगी| इसके बाद वार्तालाप की दिशा बदल गयी, अब कुत्तों के प्रकार खानदान और नस्ल की चर्चा होने लगी| इससे पहले यह सुनूँ कि बाकी के कॉलेज के कुत्ते यहाँ के कुत्तों से अच्छे हैं, मैंने वहां से कट लेना ही उचित समझा| जाते जाते श्याम से एक बिस्किट ले लिया, आज शनिवार था, एक ज्योतिषी ने मुझे 'काले कुत्ते' को शनिवार के दिन कुछ खिलाने की सलाह दी थी|          


17 comments:

  1. Musical instrument ke naam per Tali wali baat to ekdum out of box thinking hai.....

    Parera or kutte wali baat padhker main jor jor se hansa....Maja aa gaya......

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  2. simply wow!!!!...remembered the collegedays again..

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  3. अरविन्द जी, आपके संस्मरण पुस्तक के रूप में आने योग्य हैं, पढ़ कर मैं अपने कालेज के दिनों में खो गया जहाँ कमो-बेश ऐसा ही माहौल हुआ करता था. सारे टेक्निकल कालेज में आपके द्वारा बर्णित लोग रहते ही थे और उनकी हरकतें भी लगभग ऐसी ही थीं. पढ़ के जो आनंद आया उसका बखान शब्दों में करना तो मुश्किल है फिर इतना जरूर कहूँगा की खूब लिख है आपने. ये वृत्तांत आगे भी जारी रहेगा और उम्मीद है कुछ और रहस्योदघाटन भी होंगे ही. भाषा और शैली की रोचकता इस को पठनीय बनाती है और ये एहसास भी दिलाती है कि शायद ये आपकी, हमारी और सबकी कहानी है. बेहतरीन लेखन के लिए बधाई

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  4. Boss... Tusi gr8 ho.

    Padhe hue... pet pakar kar haste haste lot pot ho gaye.....

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  5. "सिनेमा बनने योग्य स्क्रिप्ट" है :)) लाजबाब ....!! बस हाइजैक तो लगभग बिहार के सभी इंजीनियरींग कॉलेज के विद्यार्थी करते थे ...हा हा हा .... :))

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  6. again a wonderful piece of work sirji..... aur aapka shyam aajkal shyam da ban gaye hai, downs ki jeevan dayini dukaan chalate hai aajkal apne putra pappu da ki sahayata se :)
    aur upar varnit Khatton ki to second mess samajh lijiye use

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  7. Bahut badhiya. Sab kuchh dekhe aur bhugate hue ke baad bhi aapke shabdo me padh kar haste haste lot pot ho gaye.

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  8. kya lika hai sr ji....
    really college ke din yaad aa gye...
    meri mano to book ki 1 achi script taiyar ho skti hai isse... :)
    ALL THE BEST..

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  9. Good one boss!!Really enjoyed the post.

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  10. Arvind,
    Maine to pahale hi tumhare andar wala "Harishankar Parasai" Pahechan liya tha.
    Banao apne "Pagadandiyo ka Jamana"

    Vishwas P Pitke (85 Batch)

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  11. wah boss...atee uttam.. mazaa aa gaya padh kar...aapne sab events ka kitna sajeev chitran kiya hai.. well done.. aap badhai ke patar hai..
    Ajay Sharma 89 batch

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  12. Arbind Bhai, Very sharp memory.. college ke dino ki yaad aa gayi.. wahi dabba, wahi hijacking wahi Anand !!! Keep it up !!! Looking forward for your next article now !!!

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  13. Shabdon Ki Jadugary Lajawab Hai. Tarif Ke liye Mujhe Shabd Nahi Mil Rahe Hai. Apna Khyal Rakhna, Kahin Lekhak Na Ban Jana.

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  14. Atee uttam aur ekdam 15 saal pahle laker khada ker diya...Boss ise purani yadein kahen ya kya lekin reeding your blog is as good as Sharad Joshi ki YATHASAMBHAV....
    MAZAA AA GAYA

    Devendra (Bhopali92)

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  15. Lajabab bhaiya bahut maja aaya

    All the Best

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