Tuesday, March 15, 2011

3. "मालन्यूट्रिशन"


                 कॉलेज के पूरब की ओर (गेट न० 1 की तरफ) सीनियर प्रोफ़ेसर्स के निवास और कॉलेज के बीच में एक बिल्डिंग स्थित है जिसे हम लोग 'जी० एच०' या गर्ल्स होस्टल कहते हैं| कॉलेज में लार्ज स्केल पर जूनियर लड़कियों के आने के बाद, लोगों की नजर में, जी० एच० का महत्व अचानक बढ़ गया, बिस्टूपुर जाने वाली लाल डब्बा अन्दर से खाली होने लगी थी, अब बस की छत भी बड़ी मुश्किल से भर पाती थी, कुछ दिनों के लिए तो जे० डब्लू० सी० (जमशेदपुर वुमेन्स कॉलेज) का भी टी० आर० पी० कम हो गया था| हमारे तत्कालीन प्रिंसिपल ने भारी तादाद में कॉलेज में इन लड़कियों को लाकर एक युग को बिना किसी खून खराबे के ही समाप्त कर दिया| अब हर बात पर गाली देने वाले नार्थ इंडियन लड़के भी गियर बदल कर आवाज में मिश्री घोल कर बातें करने लगे थे, हवाई चप्पल की बिक्री पर भी असर पड़ा था, नाई और धोबी का टर्न-ओवर बढ़ गया, प्रणाम बॉस बोलने वाली प्रजाति तो प्रायः विलुप्त हो ही गयी थी, हर तरफ हाय-हेलो जैसे ओछे शब्दों का प्रयोग प्रचलन में आ गया था| अब ज्यादा लोग अंग्रेजी बोलने और 'टेक्नीकल इंग्लिश' में फेल होने लगे थे| कॉलेज में एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज बढ़ गयी थी| अब पुराने हीरो ओब्सोलीट होने लगे थे|

                  जी० एच० एक जगह थी जहाँ मेरे साथ साथ मेरे जैसे पता नहीं कितने लोगों की आत्मा बसती थी| मेरे लिए यही स्थान अजंता, एलोरा, खजुराहो, कोणार्क सब कुछ था| लोग बेशक धार्मिक स्थानों पर बिना नहाये धोये चले जाएँ किन्तु यहाँ आने से पहले नहाना, बाल कटाना, शेव कराना, पर्फ्यूम लगाना जैसी क्रियाएँ करनी पड़ती थीं|  हाँ! बात मेरी हो रही थी, दरअसल मुझे गांजा के प्रभाव में आमिर खान की एक तत्कालीन फिल्म देखते वक़्त अचानक प्यार हो गया, अब चूंकि आर० आइ० टी० की भाषा में गांजा बहुत ही 'कुत्ती चीज' होती है, मैं हर गाने में हीरो की जगह पर खुद की और हिरोइनकी जगह अपने से दो साल जूनियर लड़की काव्या के होने की कल्पना  करने लगा| काव्या हर दृष्टिकोण से प्रथम दृष्टया ही प्यार करने के लायक थी| वह जमशेदपुर की ही रहने वाली थी और मेरे मामा भी उसी के घर के आस पास रहते थे इसलिए हर शनिवार वो मेरे साथ घर चली जाती थी, क्षमा चाहूँगा, मैं काव्या के साथ ही चला जाता था| मैंने रैगिंग के समय से ही उसे बहुत हेल्प किया था, उसे फर्स्ट ईयर में ही सेकेंड ईयर तक की सारी पुस्तकें मिल चुकीं थीं, इस चक्कर में मेरे कई घनिष्ट मित्रों की पुस्तकें भी, जिस पर मैंने अपना नाम दर्ज कर दिया था, मेरे मित्रों की जानकारी के बगैर काव्या के पास पहुँच चुकी थी| पहले वो मेरे लिए 'भैया' संबोधन का प्रयोग करती थी जिसे मैंने कॉलेज की परंपरा और ऐसी कई बातों का वास्ता देकर 'भैया' के संबोधन को 'बॉस' में परिवर्तित करा लिया| पढ़ाई-लिखाई में भोंदू से भोंदू लड़की में भी लड़कों के अन्दर के अंकुरित प्यार को समझने के लिए एक अलग ज्ञानेन्द्रिय होती है सो मेरे क्रिया कलापों को काव्या भी समझ रही थी और उसे भी एक अदद ऐसे प्रेमी की फ़ौरन तलाश थी, इसलिए उसे भी 'भैया' शब्द रूपी बाधा को उतार फेंकने में कोई सैद्धांतिक एतराज नहीं था| अब मुझे सिर्फ अपने प्यार के इजहार की औपचारिकता पूरी करनी थी| फिर भी ये दिलेरी का काम था, इसके लिए बहुत अभ्यास के साथ साथ अंदरूनी हलचलों पर काबू रखते हुए, ऊपर से अपने को शांतचित्त रखना था, फिर सधे हुए शब्दों में अपनी बात ऐसे रखनी थी कि प्रेयसी अगर क्षुब्ध होने लगे तो इसे मजाक साबित किया जा सके, और मजाक समझे तो इसकी सच्चाई का सबूत दिया जा सके| बहुत ही कठिन घड़ी थी| मुझे एक ऐसे हमराज की जरूरत थी, जो हौसला दिलाने के साथ-साथ रास्ते में एक बार सारे डाइलॉग्स का रिहर्सल करा सके, दरबान से कह कर काव्या को बाहर बुलवा सके तथा बेइज्जती होने पर बात को वहीँ दबा सके| सारे मानदंडों पर तो कोई खरा नहीं उतर रहा था, लेकिन पता नहीं क्यों मैंने इस कार्य हेतु अपने मित्र देवदत्त का चयन किया? हालाँकि मैं 'आशिकी लाइन' (कॉलेज की भाषा में 'लिट्टी पार्टी') में नहीं था फिर भी मुझे ये हिम्मत दिखानी थी| देवदत्त जी० एच० के नियमित और पंजीकृत 'विजिटर' थे अतः उन्हें भी मेरे साथ जाने में कोई आपत्ति नहीं थी|

                    नहा धोकर हम लोग जी० एच० की तरफ कूच करने लगे| सब कुछ हमारे लिए अनुकूल था, एक बिजली के खम्भे पर पत्थर मार कर भी देखा, देवदत्त का तो निशाना एकाध बार चूका भी, मैंने तो गगन नारंग, राज्यवर्धन राठौर, अभिनव बिंद्रा इत्यादि सभी को भी पीछे छोड़ दिया| रास्ते में 'मोटा वर्मा' हमारे विपरीत दिशा से अकेले मुस्कुराते हुए आते मिला और उसने बिना पूछे ही बताया की वो राधिका से आई. एस. कोड लेने गया था, सुन कर अचानक आभास हो गया कि गुरुजन क्यों आई. एस. कोड कि महिमा का गुणगान करते नहीं थकते थे| वैसे राधिका काव्या से ज्यादा आकर्षक थी लेकिन मैंने काव्या पर अपना फोकस बनाये रखा| इस यात्रा के दौरान 'फहीम सर' से नजरें चार होने को छोड़ कर सब अच्छा रहा| जब हम जी० एच० पहुंचे तो वहां का माहौल बहुत ही रमणीक था, हर तरफ अंग्रेजी, हर तरफ खिलखिलाहटें, विजिटर्स के नाम पर कॉलेज के ही कुछ लड़के, एक एक लड़की के साथ, और कुछ लड़के दो-दो या तीन-तीन लड़कियों के साथ इस बात से अनभिज्ञ कि भारत का लिंग अनुपात इसके पक्ष में नहीं है, यत्र, तत्र, सर्वत्र बिखरे पड़े थे| कुछ लड़कियां जिन्हें अपने स्वयंवर का अभी इंतजार था या अभी उनके जोड़ीदार पहुँच नहीं पाए थे, वो जमीन को ही रैम्प मान कर कैट-वाक करके वातावरण में तड़प पैदा कर रहीं थीं| वहां के रंगीनियों का आनंद लेते दरबान को देख कर मुझे उसके पूर्वजन्म में नटवर गोपाल होने का अंदेशा होने लगा| दरबान ने मुझे ऐसी नजरों से देखा जैसे भगवन विष्णु से अभिशप्त नारद स्वयंवर में पहुँच गए हों| देवदत्त पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम से थोड़ा हट कर दरबान से काव्या के साथ साथ 'अपनी गर्ल फ्रेंड' को बुलाने की अर्जी लगा कर अपनी गर्ल फ्रेंड के आते ही वहां से अंतर्ध्यान हो गए| मैं गेट से लगभग 15  मीटर की दुरी बनाते हुए (ताकि गेट पर नजर रखने के साथ रोड का भी जायजा ले सकूँ) खड़े हो कर समीप के ही एक प्रेमी युगल की बातें सुनने की कोशिश करने लगा| उस वक़्त लड़की, लड़के को एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं गोपनीय जानकारी दे रही थी|
लड़की बोली, "मम्मी मना करती रही फिर भी पापा खरीद लाये, दोनों में खूब लड़ाई हुई|"
लड़के ने पुछा, "जीता कौन?"
लड़की अपनी पैर के अंगूठे से जमीन में छेद बनाने की कोशिश करते हुए बोली, "आब्वियस्ली मम्मी और कौन?"
लड़का बात समाप्त करने के नीयत से बोला, "चलो पापा ने अलमारी तो खरीद लिया ना? जीते तो वे ही| बोलने वाले बोलते रहें|"
लड़की अड़ी रही, "सही!! मेरे पापा तो मस्त हैं, मुझे बहुत अच्छे लगते हैं| ही इज माइ हीरो, माइ फर्स्ट लव."
लड़के ने इस बार सीधा वार किया, "एंड व्हाट अबाउट मी?"
लड़की कान के पीछे बालों का एक लट फंसाते हुए बोली - "ऐक्चुअली ... यु नो .... आइ डो'न्नो."
लड़का हार न मानने के मूड में नहीं था, "हे कम ऑन! बताओ ना, बताओ ना|"
लड़की बिलकुल लड़की की तरह बोली, "ओ.के.! नाउ टेल मी वन थिंग ............"
अचानक लड़की को एहसास हो गया कि मैं उनकी बातें सुन रहा हूँ,
अब वो मेरे तरफ थोड़ा असहज भाव से देखने लगी थी, मैं दूसरी तरफ देखने लगा, वैसे भी ये लड़का, मेरा मूड, लड़की और समय तीनों को बर्बाद कर रहा था अब ये लोग गेट वन की तरफ चौथी चीज अर्थात पैसा बर्बाद करने को चल दिए| लड़कियों को गेट वन या बिस्टूपुर में ले जाकर कुछ खिलाने पिलाने की परंपरा को हम लोग 'माल-न्यूट्रिशन' कहते थे| जो सम्बन्ध बहादुरी और मूर्खता में होता है, वही 'माल-न्यूट्रिशन' और 'माल-प्रैक्टिस' में भी था, जिस प्रकार एक सीमा से ज्यादा बहादुरी मूर्खता होती है वैसे ही अगर 'माल-न्यूट्रिशन' का कारण 'मालाफाइड' हो तो इसे 'माल-प्रैक्टिस' माना जाता था|

                      काव्या का इंतजार करते वक़्त समय काटने के लिए मैं एक से सौ तक की गिनती गिनना शुरू कर दिया, अचानक काव्या गेट से बाहर निकली| उस दिन वो फिरोजी रंग (सूट का रंग नीला बताने पर उसी ने हमारे वर्णांधता का मजाक उड़ाते हुए बताया कि इसे फिरोजी कहते हैं) के सूट में अच्छी दिख रही थी| उसने एक बार पूरे वातावरण का सिंहावलोकन किया, फिर अचानक उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ी, भूचाल आ गया, एपिसेंटर कहीं मेरे ही अन्दर था, जब तक मैं इन झटकों से उबरा, उसका 'हाय' रुपी अभिवादन सुनामी बन कर आया, इस आपात स्थिति से निपटने के दौरान मुझ से एक चूक हो गयी, गलती से मैं 'बाल ब्रह्मचारी हनुमान' को स्मरण कर बैठा| खैर जो भी हो स्थिति तो संभालनी ही थी| हम दोनों में वार्ता शुरू हो चुकी थी, शुरुआती बातें जो बिना मतलब की थीं, मैं एक कान से सुनकर दुसरे कान से निकाल रहा था और काव्या दोनों कान से सुन कर मुंह से निकाल रही थी| शुरुआती आलाप और सरगमों के बाद वार्तालाप रूपी संगीत विलंबित गति से मध्य क्रम होते हुए द्रुत गति की ओर जाने ही वाला था कि 'शुक्ला बॉस' स्कूटर की सवारी लिए 'जमीन से जमीन पर मार करने वाली मिसाइल अग्नि' की तरह हमारे बीच गिरे| मैं कातर दृष्टि से उनकी तरफ देखने लगा, काव्या से नज़रें मिलते वक़्त तो नहीं, परन्तु उनसे नजरें मिलते ही मेरे जेहन में एक गाना उभरा "उनसे मिली नज़र कि मेरे होश उड़ गए" मुझे डर था कि कहीं ये यहीं पर खैनी न मांग बैठें, वे ऐसा नहीं करके, एक निरर्थक परन्तु विध्वंसकारी प्रश्न पूछते हुए और अंततः मेरा हौसला बढ़ाते हुए आगे बढ़ गए| उनके शब्द, "क्या पहलवान? तुम भी? लगे रहो! लगे रहो!" सुन कर मेरा गला अवरुद्ध हो गया, मुंह सूख गया, 'पिट्युटेरी' ग्लैंड पर 'एड्रीनल ग्लैंड' हावी हो गया और लाख कोशिशों के बावजूद मैं अपनी बात काव्या के विचारार्थ रख नहीं पाया और अपनी 'नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि' आत्मा को वहीँ छोड़, नश्वर शरीर के साथ हॉस्टल की ओर इस निर्णय के साथ लौट पड़ा कि भविष्य में प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए पत्र का सहारा लिया जायेगा| लौटते वक़्त पता चला कि गर्ल्स होस्टल से गोपाल हट 963 कदम की दूरी पर है|

5 comments:

  1. कितना सजीव एवं मार्मिक विवरण है, पढकर लगा जैसे घटनाएँ आँखों के सामने घटित हो रही हो. प्रेम का इजहार ही तो सबसे मुश्किल चीज़ है. उस समय, फेसबुक, ऑरकुट, या एस-एम-एस का जमाना होता तो इजहार भी आसान होता. आजकल के भँवरों की तरह उस ज़माने के मजनुओं को ऐसी तकनीकी सहूलियतें नहीं थी...

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  2. किस -किस पंक्ति पर दाद दिया जाय . क्यों न सम्पूर्ण रचना को 'किस' [के आई डबल एस] किया जाय .
    काव्या ने आपके दिलो दिमाग के अन्तः स्थल का अधिग्रहण किया था , कुछ ऐसी ही कातिल हैं आपकी रचना . मैदान के हर कोने में चौका जड़ते हुए, कहीं थके हुए हमें नहीं दिख रहे है. नायिका, खलनायक, सहनायक ,सभी के साथ आपका कीबोर्ड न्याय किया है आशा है मध्यांतर तक नायक को न्याय जरूर दिलाएंगे.
    "फिरोजी" से रंगभेद करना आपने जाना . वैसे ही हम भी रंगभेद नीति आपके रंगीन रचना से करेंगे. अलग अलग टिप्पणियों में .

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  3. क्या बात है? किस और Kiss! thanks a lot sir.पहले भी बता चुका हूँ, आपका कमेंट मेरे लिए प्रेरणा श्रोत होता है|

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  4. बॉस आपने तो अतीत के समुंदर मे गोता लगाने को मजबूर कर दिया, आह क्या दिन थे वो .....।
    वैसे ये काव्या मैडम सही मे थी या ये कोई काल्पनिक नाम है?

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