Wednesday, July 6, 2011

10. हवाबाजी

                     इधर देखने में आया कि कॉलेज में एक नई बहस पुराने और नए स्टुडेंट्स को लेकर शुरू हो रही है| पुराने स्टुडेंट्स का यह विश्वास था कि हम काबिल हैं और हमारे काबिल हो चुकने के बाद दुनियां से काबिलियत नामक चीज ख़त्म हो गयी है और नए स्टुडेंट्स के लिए उसका एक कतरा भी नहीं बचा है| वहीँ पर नए स्टुडेंट्स की यह आस्था थी कि पुराने स्टुडेंट्स के समय में कम्पीटीशन कम था बल्कि था ही नहीं| ये लोग कॉलेज में वैसे ही चले आते थे और कॉलेज में आकर अपना समय व्यर्थ बिताते थे, और बेमतलब का खुश रहते थे| जबकि हम इंटेलिजेंट हैं, किसी भी हालत में खुश नहीं होते हैं और हमें इस दुनियां में भगवान ने परफ़ॉर्म करने के लिए पैदा किया है और दुनियां के बाकी लोग हमारा परफार्मेंस देखने और उसे देख कर 'तर' जाने के लिए पैदा हुए हैं| यह वाद-विवाद खास तौर से थर्ड और फ़ाइनल इयर के लोग करते थे, क्योंकि ये न तो पुराने स्टुडेंट थे न ही नए स्टुडेंट्स की श्रेणी में आते थे| पुराने स्टुडेंट्स के मन में नए स्टुडेंट्स को मुर्ख और नए के मन में पुराने को जोकर समझने का चलन इतना बढ़ गया था कि अगर यहाँ 'फाईलमबाजी' नहीं होती तो अब तक सीनियर्स और जूनियर्स में युद्ध हो चुका होता|

                     बात एक नए-नवेले जूनियर को लेकर चली थी, एक शाम 'गोपाल हट' में एक थर्ड इयर के स्टुडेंट ने उस लड़के का जीवन चरित बताना शुरू किया| जिससे प्रकट हुआ कि लड़के में बदमाश बनने की क्षमता कुछ इस तरह से पनपी थी कि बड़े बड़े मनोवैज्ञानिक भी उसे प्रभु का चमत्कार मानने को मजबूर हो गए| सुना जाता है कि प्रिंसिपल साहब ने स्वयं उस लड़के के बारे में छानबीन की| उस लड़के का खानदान, रहन-सहन और पारिवारिक पृष्ठभूमि पता करने के लिए दो तीन बार उसके बाप को भी बुलवाया गया, परन्तु सब व्यर्थ! अंततः प्रिंसिपल भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हो न हो यह प्रभु का चमत्कार ही है| इस लड़के की केस-हिस्ट्री ने कुछ ऐसा तहलका मचाया कि लोग दांतों तले ऊँगली दबाने लगे| लड़का कॉलेज के इतिहास में अचानक ही तीन चार साल के लिए उदित हुआ, चमका और लोगों के लात-घूंसे, केस-मुक़दमे, पुलिस की पिटाई और कॉलेज के शो-काज नोटिस को निस्सार भाव से हजम करता हुआ कॉलेज के नयी पीढ़ी के लिए आदर्श बनते हुए यहाँ के इतिहास का एक अंग बन गया| उसकी करतूतें कॉलेज के लिए लोक-कथा बन गयीं और उस लड़के का लीला-संवरण बड़े अभिमान के साथ किया जाने लगा|

                   इसी लीला वर्णन के दौरान बताया गया कि वह लड़का इंडो-पाक बोर्डर क्षेत्र आया है, और यहाँ आने से पहले वह पाकिस्तान और भारत के बीच तस्करी करने का गिरोह चलाता था, फिर भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध कश्मीर को लेकर बिगड़ने लगे, जिसकी वजह से इसका व्यापार ठप पड़ने लगा| फिर इसके मन में सिविल इंजीनियरिंग पढने का ख्याल आया, और हमारे कॉलेज को धन्य करने वह यहाँ चला आया| फर्स्ट इयर तो इसने लात-जूता खाकर काट लिया, लेकिन सेकेण्ड इयर से इसने अपनी सेना बनानी शुरू कर दी, इस सेना को चलाने के लिए धन की आवश्यकता थी अतः स्टुडेंट होने के नाते इसने पुस्तकों की सहायता ली| और धीरे धीरे लायब्रेरी की  पुस्तकों को चुराकर बेचना शुरू किया| थर्ड इयर आते आते धन के इंतजाम के लिए इसने बिष्टुपुर में दुकानदारों से वसूली शुरू कर दी और कॉलेज के साथ साथ बाहर भी 'लात' खाने लगा| अब इसकी फौज काफी बड़ी हो गयी थी और इसने कॉलेज का अंदरूनी माहौल भी काफी हद तक अपने कण्ट्रोल में ले लिया| लड़कियों के मामले में यह बड़ा ही रुढ़िवादी था| इसका मानना था कि अगर लड़कियां आधुनिक कपड़े पहनेंगी तो ज्यादा लड़के उनके पीछे-पीछे घूमने लगेंगे और इसकी फ़ौज पर भी इसका असर पड़ सकता है| इसे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं थी| यह 'आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ' सिद्धांत का अनुयायी था, और एक पहुंचे हुए समाज सुधारक की तरह निर्लेप भाव से लड़कियों को सुधारने मात्र के लिए उन्हें यदा कदा अपमानित करता रहता था|

                   अभी इस लड़के की प्रशंसा चल ही रही थी तभी एक पुराने स्टुडेंट ने खंखार कर बताया कि वे अभी जिन्दा हैं| इनका पढाई का 'टेन्योर' पूरा हो चूका था बस परीक्षा पद्धति की खामियों की वजह से, संक्षेप में कहें तो फेल हो जाने की वजह से, कॉलेज में पुराने और नए स्टुडेंट के बीच की कड़ी के रूप में उपलब्ध थे और इस समय वे गोपाल हट में ही बैठे हुए समूचा वार्तालाप सुन रहे थे| इन्होने सबको अपने आगोश में लेते हुए बताया कि आज कल के लौंडे क्या करेंगे, यहीं राणा बॉस हुआ करते थे, मैंने उनके भी दिन देखे हैं| यह बोलते बोलते अतीत-मोह की वजह से नहीं बल्कि खंखार से उनका गला भर आया| फिर से खंखारते हुए एक ऐतिहासिक महत्व की जो वीर-गाथा प्रस्तुत किये उसका सारांश कुछ ऐसा था|  

                         राणा बॉस स्वभाव से बड़े ही परोपकारी थे, वे कमजोर लोगों की रक्षा करने के लिए हमेशा व्याकुल रहते थे| इसलिए शुरू के दिनों में तो मारपीट वाली जगहों पर वे बिना बुलाये पहुँच जाते थे और कमजोर की तरफ से डंडा या कट्टा, जैसी जरूरत हो, चला दिया करते थे| कुछ समय के बाद ये इन सब कार्यों के लिए फीस लेने लगे और समूचे  जमशेदपुर में मशहूर हो गया कि जैसे शहर का हड्डियों का सबसे बड़ा डॉक्टर, एक रोगी का फीस 70 रुपये लेता था और महंगाई के साथ साथ अपना फीस बढ़ाता भी रहता था, उसी तरह राणा बॉस का भी फीस डॉक्टर के साथ साथ ही चलता था| और किसी झगड़े में ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ने पर यह फीस बढ़ जाती थी| राणा बॉस बिना डॉक्टर से प्रेरित हुए अपने कर्तव्य का निर्वाह करते थे बल्कि डॉक्टर ही राणा बॉस पर आश्रित था| पहले डॉक्टर का क्लिनिक साक्ची में हुआ करता था| सुना जाता है कि राणा बॉस की वजह से ही उस क्लिनिक का एक ब्रांच आदित्यपुर में भी शेरेपंजाब होटल के बगल में खोलना पड़ा था| राणा बॉस अपने वित्तीय मामलों को आजकल के लौंडों जैसा लायब्रेरी की किताब बेचकर और घूम घूम कर हफ्ता वसूलने जैसे छिछोरेपन से नहीं चलाते थे| उनका कर्म क्षेत्र काफी बड़ा और व्यापक था| शुरू के दिनों में तो बिजली का तार और पानी के पाइप इत्यादि बेच कर काम चलाते थे| बाद में इनकी अच्छी प्रैक्टिस चल निकली| फिर तो लोग आकर पैसे दे जाया करते थे| राणा बॉस कॉलेज की लड़कियों को छेड़ने जैसी टुच्ची हरकत भी नहीं करते थे| वे लड़कियों को छेड़ने बिष्टुपुर जाया करते थे क्योंकि उस समय कॉलेज में पढ़ने लड़कियां आती ही नहीं थीं| पुलिस तक कांपती थी उनके नाम से, आजकल जैसा नहीं कि एक चार दिन का एस०पी० भरे बाज़ार मुर्गा बना दे|

                      बाद में उन्होंने एक बहुत ही मौलिक परन्तु एकदम वाहियात बात बताई कि "समय है! हमेशा एक जैसा नहीं रहता|" उसके बाद शहीदों को स्मरण करने वाली मुद्रा में बोले "जो किसी से नहीं हारता वो अपनों से हारता है, अपने ही कॉलेज के किसी लड़के ने मेस के खाने को कारण बना कर उन्हें चाकू घोंप कर मार डाला और सब कुछ ख़त्म कर डाला|" यह कह कर वे सिगरेट के खींचे गए धुंए को मुंह से बाहर निकालना शुरू किये, और इतनी देर तक धुआं निकालते रहे कि लोगों ने उसके ख़त्म होने कि आशा छोड़ दी| अचानक सब ओर सन्नाटा छा गया, यह राणा बॉस के लिए श्रद्धांजलि थी| एकाध और लोगों ने सिगरेट जला कर और धुंए का गोल छल्ला बना कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की| कुछ लोग पहले से जलाई सिगरेट एक दुसरे से मांग कर ही इस शोक सभा में शरीक हुए| जो लोग सिगरेट पी चुके थे उन्होंने पान खाकर शोक व्यक्त किया|      

1 comment:

  1. राणा बॉस की श्रधांजलि ब्लॉग पर भी हो गई | AD Building में लगे उनके फोटो को दिखा कर उनके बहादुरी के किस्से सुनाते हुए लोग एक दम भावुक हो जाया करते थे. वो बी क्या दिन थे टाइप :)
    नए और पुराने के मन:भावों का बहुत ही सही चित्रण किया है आपने :)

    ReplyDelete