क्यूँ गयी पढ़ाई पानी में ....
आरआईटी के बातें हैं ये, आये मजा कहानी में,
चलो याद कर लेते हैं, क्यूँ गयी पढ़ाई पानी में।
यादों का झूला झूलेंगे, हम आसमान भी छू लेंगे
चाsssर बरस वो जीवन के, ना भूले थे ना भूलेंगे।
नए नए आये थे हम सब, आपस में अनजाने थे,
सोचा था कुछ कर गुजरेंगे ऐसा मन में ठाने थे।
डी हॉस्टल में रहते थे, तब रैगिंग भी तो सहते थे
फिर भी अपनी तकलीफें हम कहाँ किसी से कहते थे।
एक सीनियर आये थे, वे खूब हमें भरमाये थे
शिमला जाने को कह के अलमारी पर चढ़वाये थे।
शपथ नहीं हैं भूले अब भी, जो हमें दिलाई जाती थी,
डाउन चलने की धमकी देकर, रूह कंपाई जाती थी।
इंट्रो देते, विश करते, निकला रैगिंग मनमानी में
चलो याद कर लेते हैं, क्यूँ गयी पढ़ाई पानी में।
रैगिंग से आज़ाद हुए, गोपाल रामजी याद हुए
डब्बे की छत पर जा बैठे, बिष्टुपुर का ख्वाब लिए।
एक डब्बा हाईजैक हुआ, कांडरा मोड़ से बैक हुआ
कितनी घटनाएँ गिनवाऊँ, लफ़ड़ा एक से एक हुआ।।
जलाराम हो या आनंद, चन्दन ही चन्दन करते थे,
जो भी पथ में आता था, उसका अभिनन्दन करते थे।
करीम की किस्मत फूटी थी, पायल भी तब टूटी थी
टूटा बसंत का शीशा जब भी, कारण कोई अनूठी थी।
एमजीएम की घटना आज भी नजरों में है घूम रही,
चुभे थे कांटे जहाँ जहाँ, पुरवइया आज भी चूम रही।
साथ रहा जे डब्ल्यू सी तन्हाई भरी जवानी में
चलो याद कर लेते हैं, क्यूँ गयी पढ़ाई पानी में।
सन् अट्ठासी आया तो अब कैंपस भी गुलजार हुआ
फूटी मन में सबके ज्योति, उम्मीदों का संचार हुआ।।
कितनों के तो कैरी आये, कितने इस खेल में फेल हुए
लुढ़के रहते थे दादू पर, कइयों के जीवन तेल हुए।
तीर धनुष से कट्टा तक सब कुछ देखा फिर भी संभला,
इस धर्मक्षेत्र, इस कर्मक्षेत्र ने झेला है कितना हमला।
एक बार तो प्रिंसी ने मीटिंग सबकी बुलवाई थी,
सभी स्टूडेंट्स बैठे थे और उनको खूब सुनाई थी।
सुट्टा तो एक तुक्का था, घास ये कैसे जान गए
ताश में कितना हारे थे? इनकी जासूसी मान गए।
भेड़ भेड़िये का अंतर तब खूब समझ में आया था,
जब अपने कुछ मित्रों को, जासूसी करते पाया था।
कहते थे गुरुजन पढ़ लो, अपना भविष्य खुद ही गढ़ लो
छोड़ो भारत माता को, खुद के लायक खुद को कर लो।
लेकिन
टूटी नहीं परम्परा, टीचर की ना सुनी जरा
टोप्पो से ही जिन्दा हैं, जीवन चुटके से हरा भरा।
चुटके की फ़ोटो कॉपी तो होती थी कामानी में,
चलो याद कर लेते हैं, क्यूँ गयी पढ़ाई पानी में।
कवि ने गाया गीत नया, गुरु की भी बच गयी हया
बड़े बड़ों के फंडे हारे, आशीष गुरु का जीत गया।
खेल खेल में पढ़ना सीखा, पढ़ने में भी खेल किया, धन्य गुरु जी आपके चलते जीवन में ना फेल किया। गुरु दक्षिणा दे न सका, ना जीवन भर दे पाउँगा पुनर्जन्म यदि होता है, मैं पुनः शिष्य बन आऊंगा।
गुरु के चरण रहेंगे निशि दिन मेरी ही मेहमानी में,
चलो याद कर लेते हैं, क्यूँ गयी पढ़ाई पानी में।
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