Wednesday, June 8, 2011

8. एकलव्य है न्याय मांगता, द्रोण अंगूठा काटो ना .....

                               डाउन होस्टल के ग्राउंड में प्रोजेक्टर से सिनेमा दिखाया जा रहा था, पता नहीं क्यों ये आयोजन हमारे प्रिंसिपल साहब ने कॉलेज के ऑडियो-विजुअल सोसाइटी के जिम्मे दे रक्खा था, उससे भी ज्यादा दुखद बात ये थी कि इस सोसाइटी का चेयर पर्सन फ़ाइनल इयर का इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का टॉपर हुआ करता था| अब कौन सी मूवी दिखाई जानी चाहिए इसका निर्णय कोई टॉपर कैसे कर सकता है? ऊपर से मेरे बैच के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के टॉपर 'जीतेन्द्र' के बहुत बड़े फैन थे| पूरा साल एक से एक भयानक फ़िल्में दिखाते रहे| एक दिन तो हद ही हो गया, जस्टिस चौधरी फिल्म चल रही थी और गाना था "मा मा मियां पॉम पॉम|" कम से कम इस गाने को दस बार चलवाया गया| मेरे लिए इस से ख़राब कुछ नहीं हो सकता था| एक साथ इतनी विपत्तियों के बावजूद ये मेरा 'सर्वाइवल इंस्टिंक्ट' था जिसके वजह से आज मैं ये ब्लॉग लिख पा रहा हूँ| एक कॉलेज के ही स्टुडेंट जो पहले मो० रफ़ी का गाना गाते थे और अच्छा गाते थे उनका स्मरण हो आया, वे रेलवे स्टेशन से खरीदी गयी कुछ पुस्तकों के बल पर अचानक ज्योतिषी और 'हस्त रेखा विशेषज्ञ' हो बैठे थे, उन्होंने एक बार मुझे हाथ देखकर बताया था कि मेरे हाथों से किसी का खून होना लिखा हुआ है, लगा आज उनकी भविष्यवाणी सत्य हो जाएगी, परन्तु मैंने अपने आप पर काबू पा लिया, और मुझे विश्वास हो गया कि जरूर उनके गणना में कोई चूक हो गयी होगी| मेरा गुस्सा दर्द बन कर मेरे पेल्विक गर्डल तक पहुँच चुका था, मुझ से अब बैठा नहीं जा रहा था, मैं अपने कमरे में चला गया|

                             अचानक बाहर से आवाजें आनी बंद हो गयीं, बाहर जाने पर मालूम हुआ कि प्रिंसिपल आये हुए हैं, प्रिंसीपल ने सबसे पहले जिसको शिकार बनाना चाहा वो सिगरेट पी कर धुंए के छल्ले बना रहा था, और इन्हें देख नहीं पाया था, प्रिंसिपल ने उसकी धुंए के छल्ले बनाने की कला को नज़रअंदाज करते हुए उसका सिगरेट छीन कर फ़ेंक दिया और जोर से चांटा लगाते हुए बोले, "तुम्हें पता है कि मैं कौन हूँ?"
लड़के ने बताया, "सर आप इस कॉलेज के प्रिंसिपल हैं| लेकिन आपने मुझे मारा क्यों? क्या गलती हो गयी मुझसे? क्या सिगरेट पीना जुर्म है?"  
अब प्रिंसिपल ने मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश की, उन्होंने पुछा, "क्या तुम अपने पिता के सामने भी सिगरेट पीते हो?"
लड़का बोला, "मैं अपनी बुरी लत के वजह से पीता हूँ किसी को चिढ़ाने के लिए थोड़े ही पीता हूँ कि सामने पियूँगा?"
तभी एक प्रोफेसर ने आ कर प्रिंसिपल के कान में कुछ कहा, फिर वे लोग एक दूसरी दिशा की तरफ बढ़े| वहां एक स्टुडेंट्स का समूह हाकी ग्राउंड के बगल के एक स्लैब पर नाना प्रकार के भोज्य, पेय और चोष्य पदार्थों के साथ बैठ कर मूवी का आनंद ले रहा था| प्रिंसिपल को अपनी तरफ आते हुए देख कर एक स्टुडेंट को छोड़ कर (जो पेय पदार्थों का ज्यादा उपभोग करने की वजह से भागने को अनैच्छिक क्रिया मान चुका था) बाकी सारे अपने आनंद की सारी  वस्तुएं वहीँ छोड़ कर प्रिंसिपल साहब के लिए कुछ 'विशेषण-विशेष्य' और 'उपमान-उपमेय' का प्रयोग करते हुए भाग खड़े हुए| अब मौका-ए-वारदात से बरामद इस लड़के से बाकियों के नाम पूछे गए| इस लड़के ने केवल शरीर पर से नियंत्रण खोया था, दिमाग पर से नहीं| इसने इस स्थिति का एक ऐसा काल्पनिक विवरण दिया कि प्रिंसिपल सहित सभी दंग रह गए| उसने बताया, "बाकी के लोग कॉलेज के नहीं थे, ये लोग आस पास के बस्तियों में रहने वाले गुंडे थे, जबरदस्ती मूवी देखने आ गए थे, और विरोध करने पर मुझे मारा पीटा और जबरदस्ती शराब पिला रहे थे|" जरूर प्रिंसिपल के दिमाग में "ग्वाल बाल सब बैर पड़े हैं" वाली बात आयी होगी| प्रिंसिपल उस लड़के को अगले दिन ऑफिस में मिलने को बोलकर और चार- पांच स्टुडेंट्स के नाम नोट कर के लौट गए| कुल मिला कर प्रिंसिपल का यहाँ आना एक राजनैतिक भूल साबित हुई| 


                        एक दिन मेरी नींद जल्दी खुल ही गयी थी, पूरा होस्टल सूना पड़ा था, सभी क्लास करने जा चुके थे| सोचा मैं भी नौ बजे वाली क्लास कर ही लूँ| क्लास में सभी बैठे हुए थे, जैसे ही मैं क्लास में घुसा, सभी मुझे ऐसे देखने लगे जैसे डॉक्टरों के बीच कोई प्रोपर्टी डीलर घुस आया हो| मैं सुरक्षित जगह देख कर तीसरी पंक्ति में किनारे बैठ गया, हालाँकि आगे भी जगह खाली थी, परन्तु मैं एक साथ लोगों को ज्यादा सदमे देने के मूड में नहीं था| आगे वाले ज्ञान के लिए लालायित थे, तो पीछे कुछ ऐसे बैठे थे जैसे किसी अफवाह का शिकार होकर पढने आ गए हों| लड़कियां भी बैठीं थीं, एक लड़का लड़कियों के ठीक पीछे वाली सीट पर सभी से आंख बचाकर पड़ोस के लड़के के साथ कुछ ओछी हरकत कर रहा था| उसने बांये पैर को तो लगभग नब्बे अंश के कोण पर मोड़ रक्खा था परन्तु दांये पैर को लड़कियों के बेंच के नीचे अपनी औकात से ज्यादा दूर तक भेज चुका था| तभी गुरु जी अपने मनोहर रूप में क्लास में अवतरित हुए| आदमी दाढ़ी बाल कटाए या नहीं, जूते पोलिश्ड हों या नहीं, कपड़ों पर आयरन किया हो या नहीं, सिर्फ नहा लेने से आदमी अच्छा दिखने लगता है, गुरु जी भी इसी धारणा के अनुयायी थे| गुरु जी ने आज 'मुक्त सरिता की गति' (ओपन चैनल फ्लो) पर व्याख्यान देना शुरू किया| फ्लुइड मेकानिक्स में से हाइड्रोस्टेटिक्स ही ऐसा था जो परीक्षा में हमलोगों का पानी रखता था, वरना फ्लुइड डाईनेमिक्स में तो अच्छे अच्छों का पानी उतर जाता था| 'प्वायजुअली', 'बरनौली', 'टोरीसेली' सभी 'ब्रूसली' के खानदान के लगते थे, ऊपर से 'रेनोल्ड' और 'स्टोक' का नाम सुनकर तो मन और भी रुआंसा हो जाता था| बड़ी मुश्किल से 'फ्लुइड मेकानिक्स' से मुक्ति मिली तब तक ये 'ओपन चैनल फ्लो' सामने आ गया| पाठ्य-पुस्तक के लेखक का नाम किसी चायनीज डिश के तर्ज पर 'वेन टी चाऊ' था| गुरूजी ने 'वेन टी चाऊ' का गुणगान करते हुए एक से एक बड़े दार्शनिकों और वैज्ञानिकों का नाम लिया, परन्तु पीछे बैठे एक लड़के पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा, वह कॉपी-कलम रूपी कीचड़ से दूर मंत्रमुग्ध सा बैठा रहा मानो खुला चैलेन्ज कर रहा हो कि 'पढ़ा दो तो जानें'| गुरु जी ने भी इस चैलेंज को स्वीकारते हुए ऐसे ऐसे ग्राफ बनाये जिसे देखकर एक से एक पढ़ाकू का दिल पढ़ाई से उचट जाये| फिर भी लड़कियां पढ़ाई में और लड़के लड़कियों में इंटरेस्ट लेते रहे| लड़कियों के ध्यान से सुनने की वजह से गुरूजी ने थोड़े साहित्यिक होते हुए पानी की गति के बारे में ऐसी ऐसी बातें बताईं कि 'जाट' तो क्लास में ही सो गया| 'जाट' के लिए पानी की सिर्फ एक ही गति थी और वो थी अल्कोहल को डाईल्युट करना| गुरूजी ने एकबारगी इतना जोर से 'फ्रुड' का नाम लिया जो समूचे कॉलेज की नींव हिला देने के लिए काफी था, उन्हें उम्मीद थी कि स्टुडेंट्स अब ताली बजाने लगेंगे, परन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं, सिर्फ 'जाट' की नींद खुल गयी और लड़कियों के पीछे बैठे लड़के ने अपना दायाँ पैर वापस खींच कर उसे भी नब्बे अंश पर मोड़ लिया| इसके बाद क्लास इस धमकी के साथ समाप्त कर दी गयी कि अगले दिन चेजी और मैनिंग का फ़ॉर्मूला पढाया जायेगा|

                              एक दिन हम बिस्टूपुर में मंतोष के दुकान पर (जहाँ आज 'बास्किंस-रोबिन्स' की आइसक्रीम की दुकान खुल गयी है) कॉफी पी रहे थे, सामने रजनीकांत खड़ा था उसने नीले रंग की शर्ट, ब्लैक पैंट और उजला जूता पहना हुआ था| उसके दाहिने हाथ में कॉफी थी और उसने चिंता के मारे अपने कान में बाएं हाथ की ऊँगली डाल ली थी, और कान को ड्रिल करने की कोशिश कर रहा था| अब 'घी सीधी उंगली से नहीं निकले तो उंगली टेढ़ी कर लेनी चाहिए' वाले सिद्धांत के अनुसार उसने अपनी ऊँगली टेढ़ी कर ली, और कान के अन्दर घुसने की कोशिश करने लगा, तभी एक मक्खी उसके गाल पर मंडराने लगी, उसने यह मानते हुए कि कान अपना है, जब चाहे उस में घुसा जा सकता है, अपना बायाँ हाथ कान से बाहर निकाल कर एक फूहड़ सी गाली देते हुए मक्खी को उड़ाने की कोशिश की, परन्तु मक्खी उड़ने के बजाय वहीँ पर मर गयी| अब रजनीकांत बाएं हाथ के अंगूठे और तर्जनी की सहायता से कैरम खेलने के अंदाज में मक्खी को अपने गाल से बेदखल किया और निश्चिन्त हो कर कान की तलाशी लेने लगा| उसके चिंता का प्रमुख कारण था "ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियरिंग" की मौखिक परीक्षा में उसका नसीब ख़राब होना| अचानक हवा चली, और रजनीकांत के आँख में कुछ पड़ गया| आज पूरी कायनात ही रजनीकांत के समस्त ज्ञानेन्द्रियों की दुश्मन हो गयी थी| अब उसे कान से ज्यादा महत्वपूर्ण आँख लगी, और आँख में पड़े कचरे को निकालने के बजाय वो आँख को इस बेशर्मी से मलने लगा जैसे कचरा को आँख में ही दफ़न कर देना चाहता हो| वैसे यह प्रक्रिया कान वाली प्रक्रिया जैसी धाराप्रवाह नहीं थी इसे रुक रुक कर अंजाम देना था| अभी उसकी आँखों में ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियरिंग के मौखिक परीक्षा में हुई किरकिरी की वजह से या शायद आँख में पड़े कचरे की वजह से आंसू आ गए थे| मैंने उसे समझाया कि जाकर टीचर के पैर पकड़ ले और हो सके तो ये आंसू उन्हें दिखाए, शायद बात बन जाये|

                      अभी मैं रजनीकांत को कुछ और तरीके बता ही रहा था तभी मेरी नजर दूर खड़ी काव्या पर पड़ी, उससे एक लड़का उसके बैग के साथ छीना-झपटी कर रहा था, मेरा खून खौल उठा, मेरे लिए यह एक सुनहरा अवसर था हीरो बनने का, मैं दौड़ कर वहां पहुंचा और दुआ सलाम के तौर पर एक सभ्य सी गाली देते हुए क्योंकि लड़कियों के सामने असली वाली गाली नहीं दी जा सकती, उस लड़के को कांग्रेस के चुनाव चिन्ह के सहायता से पाकिस्तानी झंडे की याद दिलाते हुए समझाया कि इंजीनियरिंग कॉलेज की लड़की छेड़ने का अंजाम कितना बुरा हो सकता है| इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम जमा हुई भीड़ को हटाने के लिए लिया गया था| फिर काव्या ने हम दोनों से अलग अलग बातें की, और मुझे बताया कि वह लड़का उसका 'कजिन' है| उस ज़माने में 'कजिन' शब्द का प्रयोग लड़कियां एक ब्वायफ्रेंड को दुसरे ब्वायफ्रेंड से परिचय कराने के लिए करती थीं, और इस लिहाज से मैं भी उस लड़के की जानकारी में काव्या का 'कजिन' ही था और संभवतः ये बात उसे भी अलग से काव्या ने बताई होगी| मन तो किया कि एक 'असली वाली गाली' काव्या को दे डालूँ परन्तु यह आत्महत्या करने जैसा था| अब चूँकि लड़ाई दो 'कजिनों' के बीच में थी, और यह लड़ाई काव्या की नजरों में ख़त्म हो चुकी थी, दोनों 'कजिनों, ने अंदरूनी मन से एक दुसरे को सबक सिखाने की कसम लेते हुए और ऊपरी मन से आपस में हाथ मिलाते हुए एक दुसरे से विदा लिया| काव्या गुट निरपेक्षता के सिद्धांत पर चलते हुए दोनों से अलग एक आटोरिक्शा में सवार हो कर ब्रह्माण्ड में विलीन हो गयी| मेरे समक्ष पुनः रजनीकान्त प्रश्नवाचक मुद्रा में खड़ा था|

                           दरअसल ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियरिंग के प्रैक्टिकल एक्जाम की मौखिक परीक्षा के दौरान, कुछ शक हो जाने की वजह से रजनीकान्त से एक्सटर्नल ने पुछा था कि "आप क्लास अटेंड करते थे या नहीं?"
रजनीकान्त ने तपाक से जवाब दिया कि "हाँ सर मैं सारी क्लासेज अटेंड करता था|"
इस पर शिक्षक ने पूछा, "क्या आप अपने टीचर को पहचानते हैं?"
रजनीकान्त बोला, "क्या बात करते हैं सर? पी० साहू सर पढ़ाते थे, उनको कैसे नहीं पहचानूँगा?"
शिक्षक ने पुछा, "और क्या जानते हैं उनके बारे में?"
रजनीकांत ने जवाब दिया, "यहीं आदित्यपुर में रहते हैं, टिस्को में जॉब करते हैं| उनको स्कूटर से गिरने से चोट लगी थी तो मैं उनके घर भी गया था| मैं उनका फेवोरिट स्टुडेंट हुआ करता था|"
शिक्षक ने बाकी के शिक्षकों की तरफ मुस्कान फेंकते हुए पुछा, "क्या वो यहाँ बैठे हुए लोगों में से किसी के जैसे दिखते थे?"
तब तक पड़ोस में बैठे लड़के ने रजनीकान्त को इशारों इशारों में बता दिया था कि एक्सटर्नल के रूप में 'पी० साहू सर' ही हैं| अब रजनीकांत का चेहरा सूख गया, वह समझ नहीं पा रहा था कि चेहरे पे हंसी लाकर पूरे घटनाक्रम को मजाक में बदले या रोते हुए अपनी गलती के लिए क्षमा-याचना करे| अंततः रजनीकांत चेहरे को हंसने और रोने के बीच की स्थिति में रखते हुए अपना मुंह 'रामलीला के विभीषण' की तरह बनाये हुए बाहर आ गया| असल में ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियरिंग की क्लास सुबह आठ बजे से ही होती थी, और यह रजनीकांत और मेरे जैसे बहुत सारे लोगों के लिए सोने का टाइम होता था| इस वजह से हम में से काफी लोग पूरे साल 'पी० साहू सर' का चेहरे का दीदार नहीं कर पाए थे और एकलव्य की तरह बिना वास्तविक गुरु के, उनकी कल्पना मात्र से ही 'ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियरिंग की पढ़ाई' पूरी हो गयी थी|    

11 comments:

  1. mast!!! khaskar "कांग्रेस के चुनाव चिन्ह के सहायता से पाकिस्तानी झंडे की याद".. maja aa gaya.

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  2. लड़कियां पढ़ाई में और लड़के लड़कियों में इंटरेस्ट लेते रहे| & आज पूरी कायनात ही रजनीकांत के समस्त ज्ञानेन्द्रियों की दुश्मन हो गयी थी|, padh ker apni hansee rok nahi paya.....

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  5. iss baar ka chitran bohot jada sajiv tha,,, jaise aapne rajnikant ka vivran diya,, aisa lag raha tha jaise aankhon ke samne ho raha ho sab. ek kissa mai bhi sunata hoon,, ,,,, baat hamare final year project ki hai,,,,, final year project mein 5-6 logon ki ek team banani hoti thi aur,, ek professor ko project guide banana hota tha,,,, hamare branch mein 3 hee professor the,,,, to jo professor bina ana kaani ke certificate pe sign kar dete the unhi ko humne apna project guide bana liya,, aur unko iss samman ke baare mein jankaari de di,, project bana banaya tha,, ek dost se copy paste kiya hua,,,, humne socha ki sara kaam to ho gaya hai,,,, fir project guide ki kya bhumika rahegi ismein,, kal ko agar unse humne help nahi lliya aur project dikhane akhiri din pohonch gaye , to vo to pehchanane se hee inkaar kar denge,,,, final project viva ke 2-3 week pehle apna project professor ko dikhana hota tha,, ki sab thik chal raha hi ki nahi,,,, tab hamare shaitani dimag mein kahayl aaya,,,, project dikhane ke liye hum computer science department pohonche,,,, mere group mein,, mai aur 4 log aur the,,,, professor ne pooch ki koi dikkat to nahi,,,, sab thk chl raha hai ??? to humne aise hee ek kalpanik problem create karke professor ko bataya,, professor matah khujlane lage,,,, tabhi bagal baithe mere dost ne , kaha,,,, sir hum bohot try kar rahe hain iss problem ko solve karne mein,,,, ab lag raha hai aapko help karna padega,, aapke paas jo book hai servlet ka,,,,,,(bas itna kaha hee tha ki,,,,,,) .... professor ---- kahan dekh liya (book ke bare mein),, , fir mere dost ne -- mahaul sambhalte hue -- sir matlab ki issase related koi book hogi na ,,,,,,... professor - haan kal dete hain,, ek ladka a ke le lena,, ( ab humein bhi pata nhi tha ki sir kaun sa book denge ,, aur hamein ye bhi pata nhi tha ki unko problem samajh mein aayi ya nahi,,, ya unhone pratistha mein pran gavante hue humein ashwasan de diya .. :) :)..).... fir sir ne kaha-- tumlog ka project bohot acha hai,,, issko hum sponsor karwayenge,, presentation dene jana tumlog ,, IIT , IISC ,, aur pata nahi kahan kahan ka naam bataya tha,,,, aur poora kharcha collge uthayegi,,,, humlogon ne formlity ke liye sar hila diya,,,, fir unhone kahan -- ek kaam karo-- ye jo web site banaye ho ,, issmein ek report generation tool bhi daal to bana ke,, humne fir sar hilaya,, ,,, agli bar ab professor se finl viva ke din hee mile,,,, humne presentation diya,, full confidence ke saath,,, jaise ki sab kuch hum hee ne banaya ho ,, fir sir ne report generation tool ke bare mein poocha,,, humne apna apna shaitani dimag daudaya,, aur kaha -- sir bohot try kiye,, raat bhar ,, par output nahi aa raha hi,, tool add karne par,, erroe aa ja raha hai,, samay kam tha , nahi to kar lete,,, sir -- hmmmmmmm,,,, humko ullu mat banao,,,, itna bada web site bana liye ho ,, aur ek tool nahi dala raha hai tumlog se,, hum sab samajhte hain,,,, maine aur mere mitron ne kisi tarah jabardast kism ki hansi ko ,jo nikalne ke liye bekarar thi,, dabaya,, aur wahan se fir nikal liye,, aur bahar aake ek doosre ko dekh kar ,, jor jor se hanse,, aur fir ek mitra ne kahan,, -- tension khatam,,,, ab ghar jane ka taiyari karo....

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  10. bot mast tha sir :)

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